कहानी संग्रह >> कहानी अब तक-1 (1980-1990) कहानी अब तक-1 (1980-1990)भगवानदास मोरवाल
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भगवानदास मोरवाल की ज़्यादातर कहानियाँ पारिवारिक परिस्थितियों के विभिन्न आभासों को समेटती हैं। इनकी कहानियों में आर्थिक त्रस्तता से पारिवारिक जनों में जो टूटते-फूटते सम्बन्ध हैं, वे कहीं-कहीं बहुत सरस हैं और मानवीय भी। कहीं-कहीं मार्मिकता लिये हुए हैं तो कहीं-कहीं यथार्थ के धरातल पर बहुत कसैलापन भी।
– देवेन्द्र माँझी
दैनिक वीर अर्जुन, नयी दिल्ली; 4 जून, 1986
सिला हुआ आदमी संग्रह की कहानियाँ आज के सामाजिक और आर्थिक सन्दर्भों से जुड़ कर अपनी जुड़ बात कहती हैं। इन्हें हम आज के समय के ‘सच’ के रूप में स्वीकार कर सकते हैं, क्योंकि कथाकार स्वयं जिस जीवन के बीच खड़ा है, उसी को बग़ैर लाग-लपेट के सामने ले आता है। एक गुण इन कहानियों का यह भी है कि कथाकार पात्र गढ़ता नहीं है, न ही झूठे अहम् के तहत पात्रों को अनुशासन में जकड़ता है, बल्कि वह तो पात्रों के साथ होकर, उनकी जीवन-यात्रा का सहभागी बन जाता है।
– धर्मेन्द्र गुप्त
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